शनिवार, 4 अप्रैल 2009

पत्रकारिता और साहित्य में गुणवत्ता के मापदंड खत्म


प्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी का मानना है कि पत्रकारिता और साहित्य लेखन में गुणवत्ता के मापदंड लगभग खत्म होते जा रहे हैं। वर्तमान में जो लिखा जा रहा है, वह बाजार में बेचने के लिए है और बाजार में घटिया चीजें बिक रही हैं।

जोशी शुक्रवार को यहां प्रेस क्लब में खेल समीक्षक दिवंगत वीरेंद्रसिंह बग्गा स्मृति मेंसीमित होती खेल पत्रकारिताविषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने खेल पत्रकारिता के अलावा पत्रकारिता के व्यापक पहलुओं पर भी विचार रखे। उन्होंने कहा, जब कॉपी ही अच्छी नहीं लिखी जाएगी, तो पाठक कैसे अच्छा पढ़ पाएंगे। पहले पत्रकार अच्छा लिखते थे और पैसा पाते थे, अब पैसा पाने के लिए चाहे जैसा लिख देते हैं। विश्वकप में कवरेज के लिए जो चुनिंदा पत्रकार जाते हैं, उनका खर्चा भी कंपनियों द्वारा प्रायोजित होने लगा है। फैशन शो जैसे आयोजनों में बड़ी तादाद में रिपोर्टरों की मौजूदगी से लगता है, जैसे पत्रकारिता रैम्प तक सिमटकर रह गई।

चार ‘सी’ पर टिकी है पत्रकारिता -प्रभाष जोशी ने कहा कि आज की पत्रकारिता चारसीपर टिकी हुई है। पहला सिनेमा, दूसरा क्राइम, तीसरा क्रिकेट और चौथा कॉमेडी। सारे चैनल एक ही चीज को बार-बार दिखाते हैं, भले ही लोग उसे देखना पसंद नहीं कर रहे हों। रिपोर्टिग हो या साहित्य लेखन, जब तक प्रेरित होकर नहीं लिखा जाएगा, तब तक उसका कोई मतलब नहीं है। भाड़े के आदमी ने दुनियां जीती हो, ऐसा कभी नहीं हुआ। पहले जैसी नामधारी प्रतिभाएं अब क्यों नहीं दिखाई देतीं?

कोई टिप्पणी नहीं: